Tuesday 15 January 2019

तुरपाई - प्रेम की कुछ बातें, कुछ कविताएँ


'कलमकार मंच' जयपुर की 'बीस लेखक बीस किताब' योजना के तहत मेरी नयी किताब " तुरपाई " ( प्रेम की कुछ बातें,कुछ कविताएँ ) को भी शामिल किया गया है। 20 किताबों का यह सैट की 70 फ़ीसदी छूट के साथ 900 रुपए में 'प्री बुकिंग' जारी है।

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बीस लेखकों की बीस किताबों के सेट की प्री बुकिंग प्रारम्भ
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- 70 प्रतिशत की भारी छूट 26 जनवरी, 2019 तक
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कलमकार मंच की ‘बीस लेखक, बीस किताब’ योजना के तहत साहित्यिक क्षेत्र के प्रमुख हस्ताक्षरों की किताबों से सुसज्जित 20 किताबों के सेट की ’प्री बुकिंग’ प्रारम्भ की जा चुकी है। 20 किताबों के इस सेट का कुल मूल्य रुपए 3000 मात्र है, लेकिन साहित्यप्रेमियों को ‘प्री बुकिंग’ योजना के तहत 70 प्रतिशत की भारी छूट के साथ यह सेट मात्र 900 रुपए में (डाक खर्च सहित) उपलब्ध कराया जाएगा। इस सेट में शामिल किताबों की सूची :-

1. सब कुछ जीवन
लेखक : सत्यनारायण
ISBN 978-81-940093-4-4

2. आवाजों के आस-पास
लेखक : नन्द भारद्वाज
ISBN 978-81-940093-0-6

3. लाल बजरी की सड़क
लेखक : ईशमधु तलवार
ISBN 978-81-940093-6-8

4. अरे भानगढ़
लेखक : कैलाश मनहर
ISBN 978-81-937799-5-8

5. मैं बीड़ी पीकर झूठ नी बोलता
लेखक : चरणसिंह पथिक
ISBN 978-81-940093-1-3

6. मेरा हाथ छोड़ देना
लेखक : बहादुर पटेल
ISBN 978-81-937799-7-2

7. सिनेमाई कबीर
लेखक : प्रदीप जिलवाने
ISBN 978-81-940093-2-0

8. किस्सागोई
लेखिका : उमा
ISBN 978-81-940093-7-5

9. तुरपाई
लेखक : ओम नागर
ISBN 978-81-937799-8-9

10. दास्तान-ए-हजरत
लेखिका : तसनीम खान
ISBN 978-81-940093-8-2

11. वह अमर कृति
लेखक : भागचंद गुर्जर
ISBN 978-81-937799-4-1

12. द ट्रुथ बिहाइंड ऑन एयर
लेखक : पुष्पेन्द्र वैद्य
ISBN 978-81-940093-3-7

13. अनुभूतियाँ
लेखिका : शकुन्तला शर्मा
ISBN 978-81-940101-0-4

14. दुक्के चौक्के छक्के
लेखक : ओमप्रकाश नौटियाल
ISBN 978-81-937799-3-4

15. ये दरिया इश्क का गहरा बहुत है
लेखक : पुरू मालव
ISBN 978-81-937799-2-7

16. कछु अकथ कहानी
लेखिका : कविता वर्मा
ISBN 978-81-940093-5-1

17. निथरा हुआ प्रेम
लेखिका : अंजू मोटवानी
ISBN 978-81-937799-9-6

18. चित्रकूट देवदत्त
लेखक : कैलास
ISBN 978-81-937799-6-5

19. चेहरों की तन्हाइयां
लेखक ओमवीर करन
ISBN 978-81-940093-9-9

20. सफर जिन्दगी का
लेखक : सुन्दर बेवफा
ISBN 978-81-937799-1-0

कलमकार मंच संपादक मंडल के निर्णयानुसार यह छूट प्रारम्भ के 300 सेट पर दी जाएगी। उसके बाद यह सेट वास्तविक मूल्य 3000 रुपए पर विक्रय किया जाएगा। प्री बुकिंग योजना 26 जनवरी, 2019 तक जारी रहेगी। जो भी साहित्यप्रेमी पाठक ’प्री बुकिंग’ योजना का लाभ लेना चाहें वे कलमकार मंच के बैंक खाते में ऑनलाइन/बैंक ड्राफ्ट अथवा मनीआर्डर के जरिए 900 रुपए प्रेषित कर हमें ईमेल kalamkarmanch@gmail.com पर 900 रुपए जमा कराने का विवरण अपने नाम, पूर्ण पता एवं मोबाइल नंबर सहित प्रेषित करें।

शुल्क ऑनलाइन जमा कराने के लिए बैंक डिटेल :

Kalamkar Manch
A/C No. : 37705702280
IFSC Code : SBIN0031765
State Bank of India
Durgapura, Tonk Road, Jaipur Branch

बैंक ड्राफ्ट अथवा मनीआर्डर नीचे दिये पते पर भेजें :

कलमकार मंच
3, विष्णु विहार, अर्जुन नगर, दुर्गापुरा, जयपुर - 302018
राजस्थान

नोट : बैंक ड्राफ्ट/मनीआर्डर/ऑनलाइन 900 रुपए जमा कराने का विवरण ईमेल में अवश्य दर्ज करें। प्री बुकिंग योजना 26 जनवरी, 2019 तक जारी रहेगी।

Thursday 20 December 2018

हाट - राजस्थानी डायरी

नयी किताब 

राजस्थानी डायरी 
विश्व पुस्तक मेला -2019
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Friday 6 October 2017

# कविता #

" शुक्रवार ( पाक्षिक ) जून-2011

@ जमीन और जमनालाल: तीन कविताएं
  -------------------////-------------------------ओम नागर                            

    (एक)                  

आजकल आठों पहर यूँ
खेत की मेड़ पर उदास क्यों बैठे रहते हो जमनालाल

क्या तुम नहीं जानते जमनालाल
कि तुम्हारें इसी खेत की मेड़ को चीरते हुए
निकलने को बेताब खडा है राजमार्ग
क्या तुम बिसर गये हो जमनालाल
‘‘बेटी बाप की और धरती राज की होती है
और राज को भा गये है तुम्हारे खेत

इसलिए एक बार फिर सोच लो जमनालाल
राज के काज में टांग अड़ाओंगे तो
छलनी कर दिए जाओगें गोलियों से
शेष बचे रह गये जंगलों की ओर
भागना पड़ेगा तुम्हें और तुम्हारे परिवार को

सुनो! जमनालाल बहुत उगा ली तुमने
गन्ने की मिठास
बहुत कात लिया अपने हिस्से का कपास
बहुत नखरे दिखा लिये तुम्हारे खेत के कांदों ने
अब राज खड़ा करना चाहता है
तुम्हारे खेत के आस-पास कंकरीट के जंगल

जो दे रहें है उसे बख्शीस समझकर रख लो
जमनालाल
वरना तुम्हारी कौम आत्महत्याओं के अलावा
कर भी क्या रही है आजकल/
लो जमनालाल गिन लो रूपये
खेत की मेड़ पर ही
लक्ष्मी के ठोकर मारना ठीक नहीं है जमनालाल।

(दो)

उठो! जमनालाल
अब यूँ उदास खेत की मेड़ पर
बैठे रहने से
कोई फायदा नहीं होने वाला।

तुम्हें और तुम्हारी आने वाली पीढियों को
एक न एक दिन तो समझना ही था
जमीन की व्याकरण में
अपने और राज के मुहावरों का अंतर।

तुम्हारी जमीन क्या छिनी जमनालाल
सारे जनता के हिमायती सफेदपोशों ने
डाल दिया है डेरा गांव की हथाई पर
बुलंद हो रहे है नारे-
‘‘हाथी घोड़ा पालकी, जमीन जमनालाल की।"

जरा कान तो लगाओं जमनालाल
गांव की दिशा में
जितने बल्ब नहीं टंगे अब तक घरों में
दीवार के सहारे
उससे कई गुना लाल-नीली बत्तियों की
जगमगाहट पसर गई है
गली-मौहल्लों के मुहानों पर।

और गांव की औरते घूंघट की ओट में
तलाश रही है,
उम्मीद का नया चेहरा।

(तीन)

तमाम कोशिशों के बावजूद
जमनालाल
खेत की मेड़ से नहीं हुआ टस से मस
सिक्कों की खनक से नहीं खुले
उसके जूने जहन के दरीचे।

दूर से आ रही
बंदूकों की आवाजों में खो गई
उसकी आखिरी चीख
पैरों को दोनों हाथों से बांधे हुए
रह गया दुहरा का दुहरा।

एक दिन लाल-नीली बत्तियों का
हुजूम भी लौट गया एक के बाद एक
राजधानी की ओर
दीवारों के सहारे टंगे बल्ब हो गये फ्यूज।

इधर राजमार्ग पर दौड़ते
वाहनों की चिल्ल-पो
चकाचौन्ध में गुम हो जाने को तैयार खडे थे
भट्टा-पारसौल, टप्पन, नंदी ग्राम, सींगूर।

और न जाने कितने गांवों के जमनालालों को
रह जाना है अभी
खेतों की मेड़ों पर दुहरा का दुहरा।।

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