Friday 6 October 2017

# कविता #

" शुक्रवार ( पाक्षिक ) जून-2011

@ जमीन और जमनालाल: तीन कविताएं
  -------------------////-------------------------ओम नागर                            

    (एक)                  

आजकल आठों पहर यूँ
खेत की मेड़ पर उदास क्यों बैठे रहते हो जमनालाल

क्या तुम नहीं जानते जमनालाल
कि तुम्हारें इसी खेत की मेड़ को चीरते हुए
निकलने को बेताब खडा है राजमार्ग
क्या तुम बिसर गये हो जमनालाल
‘‘बेटी बाप की और धरती राज की होती है
और राज को भा गये है तुम्हारे खेत

इसलिए एक बार फिर सोच लो जमनालाल
राज के काज में टांग अड़ाओंगे तो
छलनी कर दिए जाओगें गोलियों से
शेष बचे रह गये जंगलों की ओर
भागना पड़ेगा तुम्हें और तुम्हारे परिवार को

सुनो! जमनालाल बहुत उगा ली तुमने
गन्ने की मिठास
बहुत कात लिया अपने हिस्से का कपास
बहुत नखरे दिखा लिये तुम्हारे खेत के कांदों ने
अब राज खड़ा करना चाहता है
तुम्हारे खेत के आस-पास कंकरीट के जंगल

जो दे रहें है उसे बख्शीस समझकर रख लो
जमनालाल
वरना तुम्हारी कौम आत्महत्याओं के अलावा
कर भी क्या रही है आजकल/
लो जमनालाल गिन लो रूपये
खेत की मेड़ पर ही
लक्ष्मी के ठोकर मारना ठीक नहीं है जमनालाल।

(दो)

उठो! जमनालाल
अब यूँ उदास खेत की मेड़ पर
बैठे रहने से
कोई फायदा नहीं होने वाला।

तुम्हें और तुम्हारी आने वाली पीढियों को
एक न एक दिन तो समझना ही था
जमीन की व्याकरण में
अपने और राज के मुहावरों का अंतर।

तुम्हारी जमीन क्या छिनी जमनालाल
सारे जनता के हिमायती सफेदपोशों ने
डाल दिया है डेरा गांव की हथाई पर
बुलंद हो रहे है नारे-
‘‘हाथी घोड़ा पालकी, जमीन जमनालाल की।"

जरा कान तो लगाओं जमनालाल
गांव की दिशा में
जितने बल्ब नहीं टंगे अब तक घरों में
दीवार के सहारे
उससे कई गुना लाल-नीली बत्तियों की
जगमगाहट पसर गई है
गली-मौहल्लों के मुहानों पर।

और गांव की औरते घूंघट की ओट में
तलाश रही है,
उम्मीद का नया चेहरा।

(तीन)

तमाम कोशिशों के बावजूद
जमनालाल
खेत की मेड़ से नहीं हुआ टस से मस
सिक्कों की खनक से नहीं खुले
उसके जूने जहन के दरीचे।

दूर से आ रही
बंदूकों की आवाजों में खो गई
उसकी आखिरी चीख
पैरों को दोनों हाथों से बांधे हुए
रह गया दुहरा का दुहरा।

एक दिन लाल-नीली बत्तियों का
हुजूम भी लौट गया एक के बाद एक
राजधानी की ओर
दीवारों के सहारे टंगे बल्ब हो गये फ्यूज।

इधर राजमार्ग पर दौड़ते
वाहनों की चिल्ल-पो
चकाचौन्ध में गुम हो जाने को तैयार खडे थे
भट्टा-पारसौल, टप्पन, नंदी ग्राम, सींगूर।

और न जाने कितने गांवों के जमनालालों को
रह जाना है अभी
खेतों की मेड़ों पर दुहरा का दुहरा।।

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Tuesday 3 October 2017

जनता बावली हो'गी - डॉ ओम नागर

जनता बावली हो'गी


निब के चीरे से - डॉ ओम नागर

निब के चीरे से 

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देखना, एक दिन - डॉ ओम नागर

देखना, एक दिन

जद बी मांडबा बैठूं छुं कविता - डॉ ओम नागर

जद बी मांडबा बैठूं छुं कविता

विज्ञप्ति भर बारिश - हिंदी कविता संग्रह

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" जद बी मांडबा बैठूँ छूँ कविता " के लिए" युवा पुरस्कार-2012



केंद्रीय साहित्य अकादेमी,नयी दिल्ली का राजस्थानी कविता संग्रह-" जद बी मांडबा बैठूँ छूँ कविता " के लिए" युवा पुरस्कार-2012 प्रदान करते हुए अकादेमी के अध्यक्ष-डॉ .विश्वनाथ प्रसाद तिवारी जी।

अब तो बरसाते बलती आग - काला बादल


अब तो बरसाते बलती आग - काला बादल 

यूं तो मनु-जीवन
की साथकता मानवता की सेवा-उान मअिधक है। लेिकन एक अदद िजगी देश सेवा को समिपत कर भावी पीिढय़ोंके िलए रेणा बन जाना बड़ेजीवट का काम ह। जीवन -संघषको अपनी असल ताकत बनाकर गांव-गांव आजादी की अलख जगानेवालेकलम के सेिसपाही लोककिव भैरवलाल कालाबादल तंता के पथ पर एक बार चलना शु तो िफर न के और न थके। रोजी-रोटी के िलए की िजसाजी की ताकत को पहचान लेनेके बाद कालाबादल का शोंऔर िकताबोंकभी नाता नहींटूटा। रोजी-रोटी के िलए िकताबो (ं पोिथयो ) ं की िजसाजी का काम िकया। कालाबादल आजादी की िणम पोथी के ऐसेअनूठे िजसाज थे, िजोनं ेअपनेगीतोंसेजन-जन मराीय चेतना का संचार िकया। उोनं ेजीवनयापन के िलए रामगंजमंडी मिजसाजी व साबुन की दुकान खोली। अपनेगु पंिडत नयनूराम शमाके सहयोग से रामगंजमंडी मही पुकालय की थापना की और जनजागृित मजुट गए। नयाबास मिकया अापन बमुल सातवींजमात तक िशा हािसल करनेमकामयाब रहेकाला बादल नेअपनेजीवन मन केवल िशा के मह को समझा ब नयाबास ूल मपांच वषतक अापन कर भावी पीढ़ी को आखर- उजास भी बांटा। कालाबादल जीवन पयत कई मोच पर एक साथ लड़े-िभड़ेऔर जहां रहेवहां ईमानदारी -साई का परचम फहराया। 1936 मजामंडल की ली सदता भारत माता को दासता के बंधन सेमु के िलए देश-देश के हजारो-ं हजार लोगोंनेतन-मन-धन ोछावर िकया। ऐसेमभला हाड़ौती अंचल कैसेपीछेरहता। इस िमी मऐसेकई सपूत जे, िजोनं ेसूणजीवन देश के िलए समिपत कर िदया। इींमसेएक नाम कालाबादल का हैजो जीवनभर महाा गांधी के आदश के अनुयायी रह। 1936 मखानपुर सेजामल के सिय सद के प माधीनता संाम सेएक बार जुड़ेतो िफर तंता का नूतन सूरज उगनेतक कभी मुड़कर नही देखा। वो चाहे 1942 का 'भारत छोड़ो आंदोलन' हो या िफर िवनोबाजी का भूदान आंदोलन। जामल के ित जागकता को लेकर उद्घोष िकया- थाा थांका जुा सूं, जामल खोलगा। छाना रहबा को यो ऑडर तोड़ा, सुख सूं बोलगा।। गीतोंसेजगाई आजादी की अलख हाड़ौती अंचल के पहलेअनूठेलोककिव कालाबादल नेअपनेगीतोंको बड़ी ताकत बनाया और गांव-गांव जाकर गीतोंके माम सेलोगोंके मन मन केवल आजादी की चाह पैदा की ब िकसानो,ंवंिचतोंऔर शोिषतोंका दु:ख-ददको खर िदया। उनमहक के िलए लडऩेकी िजद पैदा की। कालाबादल िकसानोंव सामािजक सेिपछड़ोंके उान के िलए सदैव ही यशील रहे। उनके िस गीत 'काला बादल रे! अब तो बरसा दे बळती आग' की कुछ पंयां इस कार ह... काला बादल रेअब तो बरसा देबळती आग बादल राजा कान िबना रे, सुणेन ाकी बात। थारा मन की तूकरे, जद चालेवांका हाथ।। कसाई लोग खीचता ं रहे, मरी गाय की खाल। खीचं ेहाकम हारा, येकरसाणा की खाल।। माल खावेचोरड़ा रे, खावेकरज खलाण। कचेिडय़ां महाकम खावे, भूखा कं त का ाण।। फटी धोवती, फटी अंगरखी, फूा ाका भाग। काला बादल रेअब तो बरसा देबळती आग।। 'आजादी की लहर' पर लगा ितबंध कालाबादल संरणोंमतीन गीत संह के काशन का िज करतेह- 'गांवोंकी पुकार', 'आजादी की लहर' और 'सामािजक सुधार'। इनमआजादी की लहर पुक को अंेज सरकार के ारा ितबंिधत भी िकया गया, 10/4/2017 Bhairav Lal Kala badal Awakening freedom With songs of consciousness आजादी की िणम पोथी के अनूठेिजसाज: काला बादल Patrika Hindi https://www.patrika.com/kota-news/bhairav-lal-kala-badal-awakening-freedom-with-songs-of-consciousness-1-1777277/ 2/2 लेिकन आजादी का यह परवाना कब हार माननेवाला था। अपनेगीतोंमशोंका बाद भरकर अंेज शासन और जागीरदारोंकी नीदं उड़ातेरहे। नेह नेिदया 'कालाबादल' नाम अपनेसंरणोंमिज करतेए काला बादल िलखतेहिक सन 1946 मउदयपुर मदेशी रा लोक परषद सेलन का आयोजन िकया गया। िजसमपंिडत जवाहर लाल नेह नेभी िशरकत की थी। भैरव लाल की यंसेवक के प मूटी नेह को जहां ठहराया गया था, वहां लगी। एक िदन पहलेरात 2 बजेनेह िवाम के िलए आवास पंचे। इस बीच पहरेपर तैनात भैरवलाल को नीदं आनेलगी तो 'कालाबादल रे, अब तो बरसा देबळती आगÓ गीत गाना शु कर िदया। नेह नेसुना तो उोनं ेयंसेवकोंसेभैरव लाल को अपने मबुलाया और पूरा गीत सुना। दूसरेिदन सेलन मनेह नेमंच सेकालाबादल गीत वालेयंसेवक से अपना गीत सुनानेके िलए आवाज लगवायी। गीत को लोगोंनेखूब पसंद िकया और उसी िदन सेनेह ारा िदए गए उपनाम सेभैरवलाल, कालाबादल हो गए। िवधायक और मं◌ी भी रहे कालाबादल राजथान की थम िवधानसभा सन् 1952 मदो वष, 1957,1967 और सन 1977 मिवधानसभा के सद रहे। सन् 1978 से 1980 तक जनता पाट सरकार मआयुवद रा मंी रहे। 1967 से 1976 तक राजनीित सेसंास लेकर समाज सेवा के काय सेजुड़ गए और 'मीणा-संसार' पिका का सादन भी िकया। संरण और का संह का िवमोचन कालाबादल के संरण व का संह ''काला बादल रे! अब तो बरसा देबलती आग' का सादन कोटा के युवा किव एवं लेखक रामनारायण मीना 'हलधर' और डॉ. ओम नागर नेिकया है। ीमीना समाज िवकास सिमित की ओर सेकािशत पुक मउनके जीवन -संरण, सघष, तंता आोलन मउनकी सिय भूिमका के साथ ही उनके हाड़ौती के लोकिय गीत-किवताओंको शािमल िकया गया है। पुक का िवमोचन सोमवार को नगर िवकास ऑिडटोरयम महोगा।

परिचय

डॉ. ओम नागर
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जन्म: 20 नवम्बर, 1980, अन्ताना, तह. अटरु, जि. बाँरा (राज.)

शिक्षा: एम. ए. (हिन्दी एवं राजस्थानी) पीएच-डी, बी.जे.एम.सी. 

प्रकाशन: 

01." निब के चीरे से ‘‘( कथेत्तर गद्य -डायरी ) -2016 प्रकाशक-भारतीय ज्ञानपीठ,नयी दिल्ली

02." विज्ञप्ति भर बारिश"( हिंदी कविता संग्रह)-2015
प्रकाशक-सूर्य प्रकाशन मन्दिर,बीकानेर

3." देखना एक दिन"( हिंदी कविता संग्रह )-2009
प्रकाशक-विकास प्रकाशन,बीकानेर

04.‘‘जद बी मांडबा बैठूं छूँ कविता’’ (राजस्थानी काव्य   
      संग्रह)-2011

05." प्रीत"( राजस्थानी काव्य संग्रह)-2005

06 " छियापताई"( राजस्थानी काव्य संग्रह )-2003

राजस्थानी अनुवाद -

01. ‘‘जनता बावळी हो’गी’’ (श्री  शिवराम के लघु नाटक  2009

02.‘‘कोई ऐक जीवतो छै’’ कवि श्री लीलाधर जगूड़ी के   हिंदी कविता संग्रह ‘‘अनुभव के आकाश में चांद’’ का
राजस्थानी अनुवाद-2014
प्रकाशक-साहित्य अकादेमी

03. ‘‘दो ओळ्यां बीचै’’ श्री राजेश जोशी के कविता संग्रह ‘‘दो पंक्तियों के बीच’’ ( राजस्थानी अनुवाद ) साहित्य अकादमी द्वारा अनुवाद योजना के अन्तर्गत प्रकाशित।

प्रकाशन व प्रसारण:

देश की प्रमुख हिन्दी व राजस्थानी पत्र पत्रिकाओं में रचनाएॅ प्रकाशित। आकाशवाणी कोटा, जयपुर और जयपुर दूरदर्शन से समय-समय पर प्रसारण।

रचना अनुदित: पंजाबी, गुजराती, नेपाली, संस्कृत और कोंकणी। वागर्थ, परिकथा, संवदिया के युवा कविता विशेषांक व राजस्थानी युवा कविता संग्रह ‘मंडाण’ में कविताओं का अनुवाद। पहली कविता
2004 में 'साहित्य अमृत' में प्रकाशित।



* साहित्य अकादेमी की अंग्रेजी पत्रिका " इंडियन लिटरेचर" के विशेष अंक-INDIA UNDER-40 में
कविताएँ प्रकाशित।

संपादन:
01.राजस्थानी-गंगा (हाड़ौती अंचल विशेषांक)
02.' काला बादल रे! अब तो बरसादे बळती आग"
       ( स्वतंत्रता सेनानी-लोककवि भैरव लाल    कालाबादल के संस्मरण और काव्य)

पुरस्कार व सम्मान:

01 . कथेतर गद्य की पांडुलिपी "निब के चीरे से " के लिए भारतीय ज्ञानपीठ का नवलेखन पुरस्कार -2015

02  . केन्द्रीय साहित्य अकादमी नई दिल्ली द्वारा राजस्थानी कविता संग्रह ‘‘जद बी मांडबा बैठू छूँ  कविता’’ पर ‘‘युवा पुरस्कार-2012’’

03 . राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर द्वारा हिन्दी कविता संग्रह ‘देखना, एक दिन’ पर सुमनेश जोशी पुरस्कार, 2010-11

04 . राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर द्वारा शिवराम के जननाटक  ‘‘जनता पागल हो गई है’’ के राजस्थानी अनुवाद ‘‘जनता बावळी होगी’’ पर ‘‘बावजी चतरसिंह’’ अनुवाद पुरस्कार- 2011-12

05 . प्रतिष्ठित साहित्य पत्रिका "पाखी " द्वारा "गांव में दंगा " कविता के लिए "शब्द साधक युवा सम्मान -2015

06 . राजस्थान सरकार जिला प्रशासन बारां व कोटा, काव्य मधुबन, अखिल भारतीय साहित्य परिषद, आर्यवर्त साहित्य समिति, भारतेंदु समिति ,शिक्षक रचनाकार मंच, धाकड़ समाज पंचायत सहित कई साहित्यिक एवं स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा सम्मानित।

संप्रति: लेखन एवं पत्रकारिता

पता: 3-ए-26, महावीर नगर तृतीय, कोटा - 324005(राज.)
मोबाइल-9460677638,8003945548
Email-omnagaretv@gmail.com
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