Wednesday 20 September 2017

📓🖋🖋🖋लेखक की कलम से 🖋🖋🖋📓


गत एक-डेढ़ दशक से साहित्य की विभिन्न विधाओं, खासतौर पर कविताओं का प्रकाशन पत्र-पत्रिकाओं में निरन्तर होता रहा। लेकिन इस यात्रा में कुछ ऐसा भी रहा जो मुझ अकिंचन रचनाकार के लिए स्मृति की बड़ी पूँजी बना है।  जैसे पहली कविता का प्रकाशन -( साहित्य अमृत-दीपावली विशेषांक-2004,संपादक -विद्यानिवास मिश्र जी) ऐसा ही अप्रत्याशित रहा जब हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिका " वागर्थ " के संपादक- विजय बहादुर सिंह जी  ने मेरी कविता " समय " को पत्रिका के अग्रिम पृष्ठ पर स्थान दिया। कभी न बिसरने वाले लम्हें तो और भी है फिलहाल कविता -" समय " आपके लिए

Monday 18 September 2017

SONU SONU....HADOTI VERSION

कोटा की कचोरी छै गोल गोल .....सोनू सोनू ( हाडोती )
Writeen By :- Om Nagar
https://www.youtube.com/watch?v=Oz6IebD1WXY&t=1s


हिन्दी दिवस पर पत्रिका स्पेशल, राजस्थानी व्यंग्य: हैप्पी हिन्दी-डे: भासा बंतळ

हिन्दी दिवस पर पत्रिका स्पेशल, राजस्थानी व्यंग्य: हैप्पी हिन्दी-डे: भासा बंतळ - ओम नागर
-----------------------------------------------------------------------------------------------------



अंग्रेजी हैप्पी हिंदी -डे हिंदीजी, मेनी-मेनी कोंगरेच्युलेशन।
हिंदी क्या खाक दिन है। सारे साल तो लोग तुम्हारी आरती उतारते हैं। ये सब एक दिन का खेल तमाशा है।
अंग्रेजी डोंट से दिस। सिर्फ हिंदी ही ऐसी भाषा है जिसके लिए पूरा पखवाड़ा सेलेब्रेशन होता है। फिर भी तुम हैप्पी नहीं हो!!!
हिंदी कितने दिन की खुशी है। कई बार तो ऐसा भी होता है कि काम किसका और नाम किसका।
अंग्रेजी व्हाट? कुछ समझ नहीं आया। मैक इट क्लियर।
हिंदी क्या समझाऊं। अरे! हिन्दी दिवस पर भी लोग अंग्रेजी में भाषण दे जाते हैं। और क्या कहूं और कहने से क्या होगा?
(हिंदी और अंग्रेजी ये बातें
कर ही रही थीं कि राजस्थानी ने बीच में दखल दिया।)
राजस्थानी दन तो म्हारौ बी आवै छै म्हारी बहणा। मायड़ भासा दिवस। पण सत्तर बरस तो दन न्हं वां का वांई छै। देखे न्हं मानीता का फकर मं दूबळी होगी।
हिंदी इतनी चिंता भी खराब है... मेरी मां। इस एक दिन सरकारी दफ्तरों में हिन्दी की गूंज रहती है। कुछ तो ऐसे हैं जो बाबू से पहले ही पूछ लेते हैं कि हिन्दी दिवस का कितना बजट आया।
अंग्रेजी सिस्टर्स, आई डोंट हेव एनी प्राब्लम ऑफ बजट।
राजस्थानी- अतनो मजैज बी चोखो कोई न्हं। बारहां म्हीना मं तो रेवड़ी की बी चेते छै। म्हाको तो थानक ई लोक को कंठ छै। ऊँ मरै नै म्हां मरा। आई बात समझ मं।
हिंदी जब अपने ही साथ नहीं दें तो किसका सहारा मांगे। मेरे नाम से खाने कमाने वाले ही सगे नहीं हैं तो किसी को दोष दूं।
राजस्थानी- साँची बात छै। आज तो थांरो दन छै। घणी-घणी बधाई थांरै तांई।
अंग्रेजी हैप्पी हिंदी-डे बोलो!
राजस्थानी- हाँ री ! तू कहेगी जस्यां ई करैगा। म्हां मं बी अक्ल होगी थोड़ी घणी।
हिंदी अब आज के दिन तो मत लड़ो तुम दोनों।
राजस्थानी- न्हं लड़्या जदी तो ये दन देखबा मं मिल रह्या छै। न्हं तो संविधान की आठवीं सूची मं तो अंग्रेजी बी कोई न्हं पण पुरखां का दंड आज आपण भुगत रह्या छा।
अंग्रेजी और कुछ हो न हो, हिंदी के पोयट्स के तो इन दिनों खूब मौज है। वे बहुत बीजी हैं।
हिंदी बेचारों की कैसी मौज। कुछ तो हैं मेरा नाम लेते हैं। नहीं तो नई पीढ़ी तो तुम्हारी ही माला जपती है।
राजस्थानी- अरी पण बहणा! थांरो यो हिंदी दिवस बी श्राद्ध पक्ष मं ई आवै छै। थांरी सोगन तू मान कै मत मान भल्याई पण म्हारै घणौ कळेस आवै छै।
अंग्रेजी सिस्टर, यही तो वजह है कि क्रो की तरह ही गर्वमेंट के बाबू सालभर में एकबार झपट्टा मार देते हैं।
हिंदी असली संकट तो यही है। लोग त्योहार पर्व की तरह एक दिन हिन्दी की पूछपरख कर लेते हैं और दूसरे ही दिन भूला देते हैं।
राजस्थानी- आपण तो तीन 'बÓ की बगत की याद आवै छा।
अंग्रेजी व्हाट इज दिस थ्री 'बÓ?
हिंदी इस इधर उधर का तुक्का मत लगाओ, अब जाने दो, प्रोफेसर साहब बहुत देर से मेरी माला जप रहे हैं।
राजस्थानी- तीन की ई माया छै सब एक-बोट (वोट) दूजौ बौपार और तीजौ भासण।
हिंदी कैसे?
राजस्थानी अस्यां और कस्यां - नेता नै बोट ( वोट ) लैणा होवै तो आपणी - बौपार करणौ होवै तो आपणी ई भासा मं अर भासण देणा होवै तो बी आपणी भासा पण राजकाज अंग्रेजी मं। आई समझ मं।
(हिंदी अर राजस्थानी की बात सुण कै अंग्रेजी की तो हाँसी न्हं रुकी। वां मुळकती-सी आपणी गैल चाल दी)

हिंदी दिवस की झलकिया